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उ॒त स्य दे॒वः स॑वि॒ता भगो॑ नो॒ऽपां नपा॑दवतु॒ दानु॒ पप्रिः॑। त्वष्टा॑ दे॒वेभि॒र्जनि॑भिः स॒जोषा॒ द्यौर्दे॒वेभिः॑ पृथि॒वी स॑मु॒द्रैः ॥१३॥

English Transliteration

uta sya devaḥ savitā bhago no pāṁ napād avatu dānu papriḥ | tvaṣṭā devebhir janibhiḥ sajoṣā dyaur devebhiḥ pṛthivī samudraiḥ ||

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Pad Path

उ॒त। स्यः। दे॒वः। स॒वि॒ता। भगः॑। नः॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। अ॒व॒तु॒। दानु॑। पप्रिः॑। त्वष्टा॑। दे॒वेभिः॑। जनि॑ऽभिः। स॒ऽजोषाः॑। द्यौः। दे॒वेभिः॑। पृ॒थि॒वी। स॒मु॒द्रैः ॥१३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:50» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! आप जैसे (स्यः) वह (देवः) देदीप्यमान (सविता) उत्पत्ति करनेवाला सूर्य (भगः) सेवने योग्य प्राण (उत) और (अपाम्) जलों के बीच (नपात्) न गिरनेवाला विद्युत् रूप अग्नि तथा (देवेभिः) दिव्य गुणों के और (जनिभिः) जन्म वा जन्म देनेवालों के साथ (त्वष्टा) छिन्न-भिन्नकर्त्ता (सजोषाः) समान प्रीति का सेवनेवाला (देवेभिः) सूर्यादि वा दिव्य पदार्थों के साथ (द्यौः) सूर्य (समुद्रैः) समुद्रों के साथ (पृथिवी) भूमि (दानु) दान को (पप्रिः) पूर्ण करते हुए (नः) हम लोगों की (अवतु) रक्षा करे ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे ईश्वर से रचे हुए सूर्यादि पदार्थ सब मनुष्य आदि प्राणियों के कार्यसिद्धि के निमित्त हैं, वैसे आप लोग भी सब की कार्यसिद्धि करनेवाले हों ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! भवान् यथा स्यो देवः सविता भग उताऽपां नपाद्देवेभिर्जनिभिः सह त्वष्टा सजोषा देवेभिस्स द्यौः समुद्रैः सह पृथिवी दानु पप्रिरिव नोऽवतु ॥१३॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (स्यः) सः (देवः) देदीप्यमानः (सविता) प्रसवकर्त्ता सूर्य्यः (भगः) भजनीयः प्राणः (नः) अस्मान् (अपाम्) जलानाम् (नपात्) यो विद्युद्रूपोऽग्निर्न पतति सः (अवतु) (दानु) दानम् (पप्रिः) पूरयन् (त्वष्टा) छेदकः (देवेभिः) दिव्यगुणैः (जनिभिः) जन्मभिर्जनकैर्वा (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी (द्यौः) सूर्य्यः (देवेभिः) सूर्यादिभिर्दिव्यैर्वा (पृथिवी) भूमिः (समुद्रैः) सागरैस्सह ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथेश्वरेण सृष्टाः सूर्य्यादयः पदार्थाः सर्वमनुष्यादिप्राणिनां कार्य्यसिद्धिनिमित्तानि तथा भवन्तोऽपि सर्वेषां कार्य्यसिद्धिकराः सन्तु ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे ईश्वरनिर्मित सूर्य इत्यादी पदार्थ सर्व माणसे इत्यादींच्या कार्यसिद्धीचे निमित्त आहेत तशी तुम्हीही सर्वांची कार्यसिद्धी करणारे व्हा. ॥ १३ ॥